जहां मन निर्भय हो, भारत की आजादी से पहले 1913 के नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा लिखी गई एक कविता है। यह टैगोर के एक नए और जागृत भारत के दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है।
जहां मन निर्भय हो, जहां मन निर्भय हो और मस्तक ऊंचा हो, जहां ज्ञान मुक्त हो, जहां संकीर्ण घरेलू दीवारों द्वारा दुनिया को टुकड़ों में नहीं तोड़ा गया हो, जहां सत्य की गहराई से शब्द निकलते हों। अथक प्रयत्न कहाँ बाहें फैलाता है?
जहाँ मन निर्भय हो और मस्तक ऊँचा हो जहाँ ज्ञान मुक्त हो जहाँ संसार को संकीर्ण घरेलू दीवारों द्वारा टुकड़ों में नहीं तोड़ा गया हो; जहां सत्य की गहराई से शब्द निकलते हैं; जहाँ अथक प्रयास अपनी भुजाओं को पूर्णता की ओर फैलाता है; जहाँ कारण की स्पष्ट धारा ने अपनी… नहीं खोई है
बिना भय के मन कहाँ है स्पष्टीकरण?
'व्हेयर द माइंड इज विदाउट फियर' नायबेद्या नामक खंड में शामिल किया गया था। कविता है ईश्वर से देश को बुरे प्रभावों से बचाने की प्रार्थना। … यह किसी भी प्रकार की जोड़ तोड़ या भ्रष्ट शक्तियों से मुक्त राष्ट्र के लिए सर्वशक्तिमान से प्रार्थना है। यह कविता कवि के अच्छे और आदर्श स्वभाव का प्रतिबिंब है।
जहां मन बिना किसी भय के होता है उसका मुख्य विषय क्या है?
अपनी कविता व्हेयर द माइंड इज विदाउट फियर में कवि रवींद्रनाथ टैगोर ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह अपने देश को एक ऐसी स्थिति में ले जाएं जहां स्वतंत्रता को महसूस किया जा सके और सर्वोत्तम तरीके से आनंद लिया जा सके -आजादी का स्वर्ग। यह कविता तब लिखी गई थी जब भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था।
बिना डर के मन कहाँ है प्रश्न उत्तर?
जहां मन बिना डर के है प्रश्न और उत्तर
- (a) अभिव्यक्ति 'मन मुक्त है' और 'सिर ऊंचा है' का क्या अर्थ है?
- (ख) जब ज्ञान मुक्त नहीं होगा, तो इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?
- (सी) दुनिया को टुकड़ों में क्या तोड़ता है?
- (क) रेखा का क्या अर्थ है' जहां सत्य की गहराई से शब्द निकलते हैं उसका क्या अर्थ है?